अधिक पैदावार के लिए करें मृदा सुधार
विनोद कुमार शर्मा, रविंद्र कुमार एवं कपिल आत्माराम भारत में कृषि प्रगति का श्रेय किसान एवं वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत के अलावा उन्नत किस्म उर्वरकों एवं सिंचित क्षेत्र को जाता है.
इसमें अकेले उर्वरकों का खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि के लिए 50 परसेंट योगदान माना जाता है. उल्लेखनीय है कि फसलों द्वारा उपयोग की जाने वाली पोषक तत्वों की मात्रा और आपूर्ति में बहुत बड़ा अंतर है.
फसलें कम उर्वरक लेती हैंं, किसान ज्यादा डालते हैं जिसका दुष्प्रभाव जमीन की उर्वरा शक्ति पर लगातार पड़ रहा है. देश के किसान उर्वरकों के उपयोग में न तो वैज्ञानिकों की संस्तुति का ध्यान रखते हैं ना अपने ज्ञान विशेष का।
असंतुलित उर्वरकों के उपयोग से उन्नत व पौधों को हर तत्व की पूरी मात्रा मिल पाती है और ना ही उत्पादन ठीक होता है। इसके अलावा किसानों की लागत और बढ़ जाती है।
जरूरत इस बात की है कि किसान संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें ताकि उत्पादन अच्छा और गुणवत्ता युक्त हो एवं मृदा स्वास्थ्य ठीक रहे।
उपज में इजाफा ना होने के कारण
- मृदा में मौजूद पोषक तत्वों की सही जानकारी का अभाव रहता है।
- किस फसल के लिए कौन सा पोषक तत्व जरूरी है इसका ज्ञान ना होना।
- मुख्य एवं क्षमा सूक्ष्म पोषक तत्वों के विषय में जानकारी ना होना।
- उर्वरकों के उपयोग की विधि एवं समय कर सही निर्धारण न होना।
- सिंचाई जल का प्रबंधन ठीक ना होना।
- फसलों में कीट एवं खरपतवार प्रबंधन समय से ना होना।
- लगातार एक ही फसल चक्र अपनाना।
- कार्बनिक खाद का उपयोग न करने से रासायनिक खादों से भी उपज में ठीक वृद्धि ना होना।
मृदा परीक्षण क्यों जरूरी है
यदि फसल उगाने की तकनीक के साथ उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर किया जाए तो दोहरा लाभ होता है।किसानों को गैर जरूरी उर्वरकों पर होने वाला खर्च नहीं करना होता इसके अलावा संतुलित उर्वरक फसल को मिलने के कारण उत्पादन अच्छा और गुणवत्ता युक्त होता है। संतुलित उर्वरक प्रयोग से मिट्टी की भौतिक दशा यानी सेहत ठीक रहती है।
फसलों के लिए उर्वरकों की वैज्ञानिक संस्तुति
इस विधि को विकसित करने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा दशकों पहले देश के विभिन्न भागों और राज्यों एवं मिट्टी की विभिन्न दशाओं में नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश उर्वरक की अलग-अलग मात्रा तथा उनके संयोजन के साथ विभिन्न फसलों पर प्रयोग किए गए।इन प्रयोगों के फसलों की उपज पर होने वाले प्रभावों व आर्थिक पहलुओं का मूल्यांकन करने के बाद विभिन्न फसलों के लिए सामान्य संस्तुति यां विकसित की गईं। कुछ प्रमुख फसलों की सामान्य संस्तुतियां प्रस्तुत हैं।
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फसलें/उर्वरक तत्वों की मात्रा किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
नाइट्रोजन/ फास्फोरस/ पोटाश धान 120 60 40 गेहूं 120 60 40 मक्का 120 60 40 बाजरा 80 40 40 सरसों 80 40 80 अरहर 25 60 × चना 25 50 × मूग 25 50 × उर्द 25 50 ×वैज्ञानिक सुझाव भी कारगर नहीं
इस विधि का मुख्य जोश लिया है की इसमें मिट्टी की उर्वरा शक्ति का ध्यान नहीं रखा जाता। खेतों की उर्वरा शक्ति अलग-अलग होती है लेकिन बिना जांच के हमें एक समान ही खाद लगाना पड़ता है।किसी खेत में किसी एक तत्व की मात्रा पहले से ही मौजूद होती है लेकिन बगैर जांच के हम उसे और डाल देते हैं। उपज पर इसका अनुकूल प्रभाव नहीं पड़ता।
पोषक तत्वों की कमी के लक्षण
- नाइट्रोजन- पुरानी पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है। अधिक कमी होने पर पत्तियां बोरी होकर सूख जाती हैैं
- फास्फोरस-पत्तियों एवं तनाव पर लाल लिया बैगनी रंग आ जाता है। जड़ों के फैलाव में कमी हो जाती है।
- पोटेशियम- पुरानी पत्तियों के किनारे पीले पड़ जाते हैं। पत्तियां बाद में भंवरी झुलसी हुई लगने लगती हैं।
- सल्फर- नई पत्तियों का रंग हल्का हरा एवं पीला पड़ने लगता है दलहनी फसलों में गांठें कब बनती हैं।
- कैल्शियम-नई पत्तियां पीली अथवा गहरी हो जाती हैं। पत्तियों का आकार सिकुड़ जाता है।
- मैग्नीशियम पुरानी पत्तियों की नसें हरी रहती हैं लेकिन उनके बीच का स्थान पीला पड़ जाता है। पत्तियां छोटी और सख्त हो जाते हैं।
- जिंक-पुरानी पत्तियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे देखने लगते हैं। शिरा के दोनों और रंगहीन पट्टी जिंक की कमी के लक्षण है।
- आयरन-नई पत्तियों की शिराओं के बीच का भाग पीला हो जाता है। अधिक कमी पर पत्तियां हल्की सफ़ेद हो जाती हैैं। ंं ९-कॉपर-पत्तियों के शिराओं की चोटी-छोटी एवं मुड़ी हुई हल्की हरी पीली हो जाती है।
- मैग्नीज-की कमी होने पर नई पत्तियों की शिराएं भूरे रंग की तथा पत्तियां पीली से भूरे रंग में बदल जाती हैं। ११-बोरान-नई पत्तियां गुच्छों का रूप ले लेती हैं। डंठल, तना एवं फल फटने लगते हैं।
- मालिब्डेनम-पत्तियों के किनारे झुलस या मुड जाते हैं या कटोरी का आकार ले सकते हैं।
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क्या है बायो फर्टिलाइजर
बायो फर्टिलाइजर जमीन में मौजूद पढ़े अतिरिक्त खादों को घुलनशील बनाकर पौधों को पहुंचाने में मददगार होता है।नत्रजन तत्व की पूर्ति के लिए
राइजोबियम कल्चर-इसका उपयोग दलहनी फसलों के लिए किया जाता है । 1 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए 200 ग्राम के 3 पैकेट राइजोबियम लेकर बीज को उपचारित करके बुवाई करें।एजेक्वेक्टर एवं एजोस्पाइरिलम कल्चर-बिना दाल वाली सभी फसलों के लिए निम्नानुसार प्रयोग करें। रोपाई वाली फसलों के लिए दो पैकेट कल्चर को 10 लीटर पानी के घोल में पौधे की जड़ों को 15 मिनट तक ठोकर रखने के बाद रोपाई करें।
फास्फोरस तत्व की पूर्ति के लिए
पीएसबी कल्चर-रासायनिक उर्वरकों द्वारा दिए गए फास्फोरस का बहुत बड़ा भाग जमीन में घुलनशील होकर फसलों को नहीं मिल पाता । पीएसबी कल्चर फास्फोरस को घुलनशील बनाकर फसलों को उपलब्ध कराता है ।बीजोपचार उपरोक्तानुसार करें या 2 किलो कल्चर को 100 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर खेत में मिला दे। वैम कल्चर-यह कल्चर फास्फोरस के साथ-साथ दूसरे सभी तत्वों की उपलब्धता बढ़ा देता है । उपरोक्त अनुसार बीज उपचार करें।